गणेश जी की कथाएँ (Ganeshji Ki Kathayein)


गणेश जी की कथाएँ (Ganeshji ki Kathayein)

गणेश जी के बारे में अनजाने तथ्य

इस ब्लॉग, “गणेश जी की कथाएँ”, में हम भगवान गणेश के जाने अनजाने रहस्यों और कथाओं का वर्णन करेंगे।  कहा जाता है की सतयुग मे भगवान गणेश कश्यप और अदिति के यहाँ महोत्कट विनायक के नाम से जन्म लिया एवं   देवांतक और नारांतक का वध  किया । इस जन्म मे उनका वाहन सिंह था । 

त्रेता युग मे उन्होंने उमा के गर्भ से जन्म लिया और उनका नाम गुनेश रखा गया सिंधु नाम के राक्षस के  वध के बाद वे मयुरेश्वर नाम से जाने गए। इस युग मे उनका वाहन मयूर था।  द्वापर युग मे वे ऋषि पाराशर के यहाँ गजमुख नाम से जन्मे ,जिनका वाहन मूषक था। मूषक अपने पिछले जन्म मे एक गंधर्व थे जिन्होंने सौभरी ऋषि की पत्नी पर कुदृष्टि डाली थी । जिसके कारण उसे मूषक योनि मे रहने की सजा मिली थी।

Ganeshji के गुरु परशुराम थे। भगवान गणेश लक्ष्मी जी के दत्तक पुत्र है। तभी लक्ष्मी के साथ उनकी पूजा की जाती है ।लक्ष्मी जी चंचल स्वभाव की होने के कारण एक जगह टिकती नहीं इस कारण वह गणेश जी को साथ रखती है ताकि वह स्थिर रह पाए ।

गणेश जी का सबसे प्रिय भोग मोदक (laddu/लड्डू ) है। सबसे प्रिय पुष्प लाल रंग का (Hibiscus/गुड़हल)  है। प्रिय वस्तु दूर्वा है। प्रिय वृक्ष शमी—पत्र और केला  है। सबसे प्रिय फल अमरूद है।

गणेश जी की कथाएँ

गणेश जी की जन्म कथा

गणेश की जन्म को लेकर एक कथा प्रचलित है ।सतयुग मे भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्थी को मध्यान्ह के समय  एक बार माता  पार्वती को स्नान के लिए जाना था परंतु उस समय पहरे पर कोई नहीं था । 

तब उन्होंने अपने  मैल से एक प्रतिमा बनाई और अपनी शक्तियों से उसमे प्राण डाल दिए ।  इसके बाद उन्होंने उस गणेश प्रतिमा को आज्ञा दी की उनकी इजाजत के बिना कोई अंदर प्रवेश न कर पाए । जब भगवान शिव आए तो  उन्होंने गणेश जी को न पहचान कर  हटने के लिए कहा लेकिन Ganeshji नहीं हटे । माता की आज्ञा पालन के लिए उन्होंने शिव जी के द्वारा भेजे गए सभी गणों और देवताओं को परास्त कर दिया। तब शिव को क्रोध आ गया और उन्होंने  गणेश जी का धड़ काट डाला।

इससे Mata Parvati जी ने अपने क्रोध से हाहाकार मचा दिया। तब देवताओं ने गणेश जी को पुनः जीवित करने के लिए प्रार्थना की । तब शिव जी ने उन्हें हाथी का मस्तक लगा कर जीवित किया । 

गणेश जी के साहस और दृढ़ निश्चय से खुश होकर देवताओं ने उन्हें की वरदान दिया और यह भी कहा कि जब भी कोई शुभ कार्य की शुरुआत की जाएगी तो सर्वप्रथम आपकी पूजा की जाएगी । आपकी पूजा के बाद ही त्रिदेव की पूजा की जाएगी । इसलिए आज भी हर पूजा से पहले  गणेश जी को याद किया जाता है । उस समय बुध देव भी वहाँ थे उन्होंने भी प्रसन्न होकर बुधवार को उन्हें समर्पित कर दिया । बुध के अधिपति देवता भी भगवान गणेश है।

Ganeshji की सर्वप्रथम पूजा की कथा

कई गणेश जी कथाएँ हैं, जिसमें यह एक घटना भी प्रचलित है।  एक बार सभी देवताओं मे यह विवाद हुआ कि पृथ्वी पर सबसे पहले किस देवता की पूजा हो। तब नारद जी ने सभी देवगणों को शिव जी की शरण में जाने के लिए कहा और उनसे इसका हल जानने के लिया कहा । जब सभी देवता शिव जी के पास पहुचें तो शिव जी ने एक प्रतियागिता आयोजित की। शिव जी ने सभी देवताओं को अपने –अपने वाहन पर बैठ कर पूरे ब्राहमंड का चक्कर लगाकर आने को कहा । जो सबसे पहले पहुंचेगा वही सर्वप्रथम पूजनीय होगा ।

सभी देवता अपने-अपने वाहन पर परिक्रमा के लिए निकल पड़े, लेकिन गणेश जी ब्रह्मांड की परिक्रमा की जगह अपने माता-पिता की सात परिक्रमा पूर्ण करके उनके समक्ष हाथ जोड़ कर खड़े हो गए । जब सभी लौटे तो शिव जी ने गणेश जी को विजेता घोषित कर दिया। सभी ने अचंभे से कारण पूछा तो  शिव जी ने बताया कि उन्होंने माता-पिता को पूरे ब्रह्मांड से सर्वप्रथम माना। इसीलिए वह विजेता हैं । सभी देवता उनके इस निर्णय से संतुष्ट हो गए ,तभी से गणेश जी को सर्वप्रथम पूज्य माना जाने  लगा ।

गणेश चतुर्थी के महत्व की कथा

हम दस दिन का गणेश चतुर्थी का उत्सव बड़े उत्साह के साथ मानते है। जिसका समापन अनंतचतुर्दशी को होता है । इसके पीछे भी एक कथा प्रचलित है (Ganeshji ne kaunsa granth likha) कि वेदव्यास जी ने गणेश जी से महाभारत ग्रंथ लिखने की प्रार्थना की तब भगवान बिना रुके दस दिनों तक महाभारत लिखते रहे इस समय एक ही स्थान पर लगातार बैठने से उनके शरीर पर धूल मिट्टी जम गई । Ganeshji ने सरस्वती नदी मे नहा कर अपनी धूल मिट्टी साफ की । 

तब से गणेश चतुर्थी के दिन गणपती की मूर्ति स्थापित की जाती है। नौ दिन तक उनकी पूजा की जाती है और दसवें दिन उनका विसर्जन किया जाता है। पानी के द्वारा वह अपने माता-पिता से मिलने जाते है।

Ganeshji के विवाह की कथा

गणेश जी का सिर हाथी का होने की वजह से उनका विवाह नहीं हो पा रहा था और सभी देवताओं का विवाह हो चुका था । Ganeshji बहुत गुस्सा थे । ब्रह्मा जी से उत्पन्न हुईं ऋद्धि-सिद्धि नाम की दो कन्या थीं जिनके साथ गणेश जी का विवाह हुआ। ऋद्धि का मतलब भौतिक समृद्धि और सिद्धि का मतलब बौद्धिक भावनात्मक परिपक्वता हैं। उनका विवाह इनके साथ करा दिया गया।  उनके दो पुत्र भी हुए जिनका नाम शुभ और लाभ है (Ganesh ji ke putra)। उनकी पुत्री भी थी, जिनका नाम संतोषी माता है। Ganeshji के दो पोत्र आमोद और प्रमोद हैं।

Ganeshji के एकदांत की कथा

गणेश जी की कथाएँ (GaneshJi Ki Kathayein)

Ganeshji एकदंती है ।इसके पीछे भी कई गणेश जी की कथाएँ प्रचलित है । एक दिन परशुराम जब शिवजी से मिलने कैलाश आये तब Ganeshji ने उन्हें जाने से रोक दिया तब परशुराम को गुस्सा आ गया और उन्होंने भगवान शिव के फरसे से वार किया जिससे Ganeshji का एक दांत टूट गया ।

एक कथा के मुताबिक गणेश जी महाभारत लिख रहे थे तब उनकी लेखनी टूट जाती है तब लिखना न रुके, इसलिए उन्होंने अपना दांत तोड़कर लेखनी बनाई ताकि महाभारत के लिखने का काम सूचारु रूप से चलता रहे ।

एक कथा के मुताबिक गजमुखासुर  राक्षस को वश मे करने के लिए गणेश जी ने अपना दांत तोड़ दिया था। गजमुखासुर  को वरदान प्राप्त था कि वो किसी भी शस्त्र से नहीं मारा जा सकता है। इसलिए Ganeshji ने अपने दांत से उसका वध किया।

Anita Sharma

Anita Sharma

मैं अनीता शर्मा हूं, एक गर्वित गृहिणी जो एक सुखद और खुशहाल घर बनाने का जुनून रखती हूं। मुझे हमारी संस्कृति और परंपराओं, पर्यटन और यात्रा स्थलों, खाना पकाने और पालन-पोषण के बारे में बात करना पसंद है। मुझे यहां अपने विचार व्यक्त करने और साझा करने का अवसर मिलने पर बहुत खुशी है। आशा करती हूं कि यह आवश्यक जानकारी प्रदान करने में मदद करेगा।


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