महाकुंभ 2025: जानें 144 साल में ही क्यों होता है महाकुंभ?   


महाकुंभ 2025: जानें 144 साल में ही क्यों होता है महाकुंभ?

महाकुंभ 2025: जानें 144 साल में ही क्यों होता है महाकुंभ?: महाकुम्भ क्या होता है?

कुम्भ मेला हिन्दू परंपरा और धर्म में एक विशेष स्थान रखता है। कुम्भ का शाब्दिक अर्थ होता है कलश। इसका अर्थ सांकेतिक तौर पर सागर मंथन से उत्पन्न अमृत कलश और उसके महत्व से जुड़ा हुआ है। इस ब्लॉग, “महाकुंभ 2025: जानें 144 साल में ही क्यों होता है महाकुंभ?” में हम 2025 में हो रहे महाकुंभ मेले से जुड़ी कुछ रोचक बातों को जानेंगे।

कुम्भ मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है, जो हर 12 वर्षों में भारत के चार पवित्र नदी तटों पर आयोजित होता है: प्रयागराज (इलाहाबाद), हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक। ज्योतिष के आधार पर यह कुंभ मेला पौष पूर्णिमा के दिन आरंभ होता है। इस बार का कुंभ 144 वर्षों मे आने वाला महाकुंभ हैं, 11 पूर्ण कुम्भ के बाद आने वाले 12 वें पूर्ण कुम्भ को महाकुंभ कहते हैं।

2025 में महाकुंभ प्रयागराज में आयोजित हो रहा है। जहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम है (सरस्वती नदी का अस्तित्व अदृश्य रूप में बहता हुआ माना गया है)। महाकुंभ का आयोजन हिंदू धर्म और ज्योतिष से गहराई से जुड़ा हुआ है। महाकुंभ में स्नान करने से पापों का प्रायश्चित, मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन मंदिरों में दर्शन और दान करने का महत्व है। महाकुंभों के आयोजन में साधु संत, अघोरी, नागा साधु, और समस्त अखाड़ों के संत स्नान करने आते हैं।

यह एक खगोलीय घटना, जिसमे सूर्य चंद्रमा और बृहस्पति एक विशिष्ठ स्थति मे होते हैं इसमे बृहस्पति कुम्भ राशि में और सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता हैं यह घटना गंगा , यमुना और सरस्वती के संगम पर ऊर्जा को जागृत करती हैं। सूर्य और चंद्र की गति के आधार पर महाकुंभ आयोजित होता हैं जिसे शुभ माना जाता हैं। यह हर 144 वर्षों के बाद आता हैं।   इस कारण इसका एक विशेष महत्व है।

महाकुंभ 2025: जानें 144 साल में ही क्यों होता है महाकुंभ?: महाकुम्भ कब मनाया जाता है?

मकर संक्रांति के दिन से माघ महीना शुरू हो जाता है। इस महीने में दान, स्नान और ध्यान का विशेष महत्व है। ज्योतिषियों के मुताबिक इस माघ महीने में भगवान विष्णु और धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा से धन-धान्य की पूर्ति होती है।  इसके साथ-साथ मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। कुम्भ मेला भी जनवरी माह – फरवरी माह (माघ महीना) में ही मनाया जाता है।

कुंभ मेलों के प्रकार

कुंभ मेले चार प्रकार के होते हैं, जो उनका समय और आयोजन स्थान के आधार पर अलग-अलग होते हैं:

माघ मेला (मिनी कुंभ)-

आयोजन समय: हर साल मे एक बार मनाया जाता हैं

स्थान: प्रयागराज

समय: जनवरी माह – फरवरी माह (माघ महीना)

 

अर्द्धकुंभ मेला-

आयोजन समय: 06 वर्षों में में मनाया जाता है।

स्थान: हरिद्वार, प्रयागराज

समय: जनवरी माह – फरवरी माह (माघ महीना)

 

पूर्ण कुंभ मेला-

आयोजन समय: हर 12 वर्षों में

स्थान: प्रयागराज (इलाहाबाद), हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक

समय: जनवरी माह – फरवरी माह (माघ महीना)

 

महाकुंभ मेला

आयोजन समय: हर 144 वर्षों में

स्थान: केवल प्रयागराज (इलाहाबाद) में

समय: जनवरी माह – फरवरी माह (माघ महीना)

 

महाकुंभ 2025: जानें 144 साल में ही क्यों होता है महाकुंभ?:- शाही स्नान तिथियां

पौष पूर्णिमा शाही स्नान- 13 जनवरी 2025 (सोमवार)

मकर संक्रांति, शाही स्नान -मंगलवार 14 जनवरी 2025 (मंगलवार)

 

मौनी अमावस्या, शाही स्नान -बुधवार 29 जनवरी 2025 (बुधवार)

बसंत पंचमी, शाही स्नान -सोमवार 3 फरवरी 2025 (सोमवार)

माघी पूर्णिमा, शाही स्नान – 12 फरवरी 2025 (बुधवार)

महाशिवरात्रि शाही स्नान – 26 फरवरी 2025 (बुधवार)

 

महाकुंभ 2025: जानें 144 साल में ही क्यों होता है महाकुंभ?: प्रचलित कथाएँ

महाकुंभ 2025: जानें 144 साल में ही क्यों होता है महाकुंभ?

कुंभ की पहली कथा: महर्षि दुर्वासा का श्राप

महर्षि दुर्वासा को उनके क्रोध और तप के लिए जाना जाता था। पौराणिक कथा के अनुसार जब एक बार दुर्वासा ऋषि ने स्वर्ग का भ्रमण कर रहे थे, तो वह इन्द्र को देख कर बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने देवराज इन्द्र को एक माल पहन दी। 

तब अहंकार में डूबे इंद्र ने वह माला अपने ऐरावत हाथी को पहना  दी। हाथी ने उस माला को जमीन पर गिरा दिया और अपने पैरों से मसल डाला। महर्षि दुर्वासा को इन्द्र की इस हरकत से बहुत क्रोध आ गया और परिणामस्वरूप उन्होंने इंद्र को श्राप दे दिया, कि उनका सब सुख संपदा नष्ट हो जाएगी। देवता अपनी शक्तियां भी खो देंगे। इस घटना के बाद देवता कमजोर हो गए और असुरों ने उन्हें पराजित कर दिया।

दुखी होकर सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गए, और उनसे प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने उन्हें सागर मंथन करने को कहा। सागर मंथन करने के दौरान अमृत कलश निकला, जिसे लेकर देवताओं और असुरों के बीच भयंकर युद्ध हुआ।यह युद्ध 12 दिनों तक चला , देवताओं के लिए एक एक दिन एक वर्ष के बराबर होते हैं, इस संघर्ष के दौरान अमृत कलश से कुछ बूंदें पृथ्वी पर छलक कर गिर गयीं, जिन स्थानों पर ये बूंदें गिरीं, वहां कुंभ मेला आयोजित होने लगा, इसलिए यह हर 12 वर्षों के बाद महाकुंभ मनाया जाता है।   

महाकुंभ 2025: जानें 144 साल में ही क्यों होता है महाकुंभ?

कुंभ की दूसरी कथाः गरुड़ की अमृत यात्रा

इस कथा के अनुसार प्रजापति दक्ष की दो पुत्रियां कद्रू और विनिता कश्यप ऋषि से ब्याही गई थीं। एक बार दोनों बहनों में इस बात पर विवाद हो गया कि सूर्य के अश्व काले हैं या सफेद। कद्रू ने अपने नागपुत्रों को आदेश दिया कि वे अश्व की पूंछ से लिपट जाएं, जिससे वह काला दिखाई दे। विनिता यह देखकर हार गईं और दासी बन गईं। विनिता और उनके पुत्र गरुड़ को भी नागों की सेवा करनी पड़ी।

गरुड़ ने अपनी मां को इस दासता से मुक्त करने के लिए नागों से उपाय पूछा। नागों ने कहा कि यदि गरुड़ अमृत कलश लाकर दे दें, तो वे विनिता और गरुड़ को मुक्त कर देंगे। गरुड़ ने नागलोक से अमृत लाने का साहसिक प्रयास किया।

इस यात्रा के दौरान इंद्र ने गरुड़ पर कई बार हमला किया, लेकिन गरुड़ सफल रहे और अमृत कलश ले आए। देवता विष्णु जी के पास गए और विष्णु जी ने यह देख की वो अमृत कलश से अमृत नहीं ले रहे तो विष्णु ने उन्हे अमृत लेकर जाने का कारण पूछा, तब उन्होंने अमृत कलश ले जाने का कारण बताया विष्णु जी ने उन्हें अपना वाहन बनने के लिए कहा और वो तैयार हो गए।

जैसे ही गरुड ने अमृत कलश नीचे रखा वह अमृत कलश विष्णु जी की महिमा से गायब हो गया। लेकिन उस स्थान पर रख देने से गरुड और उनकी माता दासता से मुक्त हो गए। उनके अमृत कलश लाने के दौरान 04 बूंद अमृत की छलक कर पृथ्वी पर गिर गईं। जिन स्थानों पर यह बूंद गिरी, वे नदियों के किनारे बसे स्थान थे, जो पवित्र हो गए। उन नदियों में माघ माह में स्नान पवित्र माना जाने लगा। वहाँ पर कुंभ मेला मनाया जाता है।

महाकुंभ 2025: जानें 144 साल में ही क्यों होता है महाकुंभ?

महाकुंभ 2025: जानें 144 साल में ही क्यों होता है महाकुंभ?: महत्व-

महाकुंभ का धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से गहरा महत्व है:

  • आध्यात्मिक शुद्धि: यह माना जाता है कि महाकुंभ के दौरान पवित्र नदियों में स्नान करने से पापों का नाश होता है, आत्मा को मोक्ष मिलता है, और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
  • सांस्कृतिक एकता: इस आयोजन में भारत और दुनिया भर से करोड़ों श्रद्धालु, संत और साधु शामिल होते हैं। यह एकता और साझी धार्मिक प्रथाओं का प्रतीक है।
  • धार्मिक संवाद का मंच: यह आयोजन संतों और महात्माओं के प्रवचनों, चर्चा और आध्यात्मिक रस्मों के लिए एक मंच प्रदान करता है।
  • पौराणिक महत्व: महाकुंभ दिव्य ऊर्जा और ब्रह्मांडीय संबंधों का उत्सव है, जो मानवता और सृष्टि के बीच का गहरा जुड़ाव दर्शाता है।
  • आर्थिक और सामाजिक प्रभाव: महाकुंभ स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है, भारत की सांस्कृतिक धरोहर को प्रदर्शित करता है, और वैश्विक ध्यान आकर्षित करता है।
  • यूनेस्को ने कुंभ मेला को 2017 में अपनी “मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर” की सूची में शामिल किया। यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल होने से कुंभ मेला का महत्व और भी बढ़ गया है।
  • विश्वसनीय अनुमान के मुताबिक, सरकार को इस कुंभ मेले 2025 में 40 करोड़ पर्यटकों के भाग लेने की उम्मीद है।
  • अक्षयवट वृक्ष एक बहुत पुराना पेड़ है जो प्रयागराज का मुख्य आकर्षण भी है। यह वृक्ष हिंदुओं के लिए अत्यंत पवित्र वृक्ष है और इसका उल्लेख हिंदू धर्मग्रंथों में भी मिलता है।
  • महाकुंभ इतना बड़ा आयोजन है कि अंतरिक्ष से भी दिखाई देता है, और अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष से श्रद्धालुओं की भीड़ को देख सकते हैं।

महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह आत्मिक जागरण, सांस्कृतिक समृद्धि और भारत की प्राचीन परंपराओं का प्रतीक है।

आशा करते हैं यह ब्लॉग, “महाकुंभ 2025: जानें 144 साल में ही क्यों होता है महाकुंभ?” आपके लिए जानकारी दायक सिद्ध होगा।

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