बृहस्पतिवार व्रत कथा एवं आरती (Brihaspativar Vrat Katha & Aarti)


बृहस्पतिवार व्रत कथा एवं आरती (Brihaspativar Vrat Katha & Aarti)

बृहस्पतिवार/गुरुवार का दिन देव गुरु ब्रहस्पति की पूजा का दिन है। इस ब्लॉग, “बृहस्पतिवार व्रत कथा एवं आरती (Brihaspativar Vrat Katha & Aarti)” में हम बृहस्पतिवार/गुरुवार (Thursday) का व्रत और पूजा की विधि जानेंगे।

बृहस्पतिवार व्रत कथा एवं आरती - पूजा विधि

गुरुवार  को जो भी स्त्री-पुरुष व्रत कर रहे हों,  उन्हें दिन में एक ही बार भोजन करना चाहिए, क्योंकि बृहस्पति देव का इस दिन पूजन होता है। भोजन में पीले चने की दाल का उपयोग करें, किन्तु नमक नहीं खाए और पीले वस्त्र पहनें, पीले ही फलों का प्रयोग कर ,पीले चंदन से पूजन करें, पूजन के बाद प्रेमपूर्वक गुरु महाराज की कथा सुननी चाहिए।

इस व्रत को करने से मन की इच्छायें पूरी होती हैं और बृहस्पति महाराज प्रसन्न होते हैं तथा धन, पुत्र, विद्या तथा मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है। परिवार को सुख शांति मिलती है, इसलिए यह व्रत (सर्वश्रेष्ठ और आती फलदायक)सब स्त्री व पुरुषों के लिए है। इस व्रत में केले का पूजन करना चाहिए। कथा और पूजन के समय तन, मन, क्रम, वचन से शुद्ध होकर जो इच्छा हो बृहस्पतिदेव से प्रार्थना  करनी चाहिए । उनकी इच्छाओं  को बृहस्पतिदेव अवश्य पूर्ण करते हैं ऐसा मन में दृढ़ विश्वास रखना चाहिए।

बृहस्पतिवार व्रत कथा एवं आरती - व्रत कथा

भारतवर्ष में एक राज्य राज्य करता था वह बड़ा प्रतापी और दानी था। वह नित्य गरीबों और ब्राह्मणों की सहायता करता था। यह बात उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी, वह न ही गरीबों को दान देती न ही भगवान का पूजन करती थी और राजा  को भी दान देने से मना किया करती थी।   

एक बार राजा शिकार खेलने वन को गए हुए थे और रानी महल में अकेली थी, उस समय बृहस्पति भगवान साधु के भेष में राजा के महल में भिक्षा के लिए आए और रानी से भिक्षा माँगी। रानी ने भिक्षा देने से इंकार  किया और कहा –ही साधु महाराज मैं तो दान पुण्य से तंग आ गई हूँ। मेरा पति सर धन लुटता रहता है। मेरी इच्छा है कि हमारा धन नष्ट हो जाए फिर न रहेगा बांस और न बजेगी बाँसुरी।

साधु ने कहा- देवी तुम तो बड़ी अजीब हो। धन संतान तो सभी चाहते हैं । पुत्र और लक्ष्मी तो पापी के घर भी होने चाहिए। यदि तुम्हारे पास अधिक धन है तो भूखों को भोजन दो, प्यासों के लिए प्याऊ बनवाओ, मुसाफिरों के लिए धर्मशालाएँ खुलवाओ । जो निर्धन अपनी कुंवारी कन्याओं का विवाह नहीं कर सकते उनका विवाह करा दो। ऐसे और कई काम हैं जिनके करने से तुम्हारा यश लोक-परलोक में फैलेगा।

परंतु रानी  पर उपदेश का कोई प्रभाव न पड़ा वह बोली – महाराज आप मुझे कुछ न समझायें मैं ऐसा धन नहीं चाहती जो हर जगह बाँटती फिरूँ। साधु ने उत्तर दिया – यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है, तो जैसा तुम चाहो, वैसा ही होगा।  तुम ऐसा करना कि बृहस्पतिवार को घर को लीपकर पीली मिट्टी से सिर धोना,  भट्टी चढ़ाकर कपड़े धोना, ऐसा करने से आपका सारा धन नष्ट हो जाएगा। इतना कहकर वह साधु महाराज वहाँ से आलोप हो गए।

जैसे वह साधु  कह कर गया था रानी ने वैसा ही किया । छः बृहस्पतिवार ही बीते थे कि उसका समस्त धन नष्ट हो गया और भोजन के लिए दोनों तरसने लगे । सांसारिक भोगों से दुखी रहने लगे। तब वह राजा रानी से कहने लगा कि तुम यहाँ पर रहो मैं दूसरे देश में जाता हूँ क्योंकि यहाँ पर मुझे सभी मनुष्य जानते हैं इसलिए कोई कार्य भी नहीं कर सकता। देश चोरी परदेश भीख बराबर है ऐसा कहकर राजा परदेश चल गया। वहाँ जंगल को जाकर लकड़ी काटता और उसे शहर में बेचता, इस तरह वह जीवन व्यतीत करते लगा।

राजा के बिना रानी और उसकी सेविका दुखी हो गईं।  उस समय जब रानी और सेविकाओं को सात दिवस बिना भोजन के रहना पड़ा, तो रानी ने अपनी सेविका से कहा, हे सेविका, पास के एक नगर में मेरी बहन रहती है । वह बहुत धनवान है । तुम उसके पास जाकर कुछ ले आओ ताकि थोड़ा  हमारी गुजर-बसर हो जाए। सेविका रानी की बहन के पास गई ।

उस दिन गुरुवार था । रानी का बहन उस समय गुरुवार के व्रत की कथा सुन रही थी । सेविका ने रानी की बहन को अपनी रानी का समाचार दिया, लेकिन रानी की बहन ने कोई जवाब नहीं दिया । जब सेविका को कोई जवाब नहीं मिला तो वह बहुत ही दुखी हुई और उसे गुस्सा भी आया। सेविका ने वापस आकर रानी को सारी बात बताई, जिसे सुनकर, रानी ने अपनी किस्मत को कोसा।

रानी की बहन ने सोचा कि मेरी बहन की सेविका आई थी, लेकिन मैंने उससे बात नहीं की, इस कारण वह बहुत दुखी हुई होगी । कथा उपरांत और पूजन समाप्त कर वह अपनी बहन के घर को गई और बोली, हे बहन, मैं गुरुवार/बृहस्पतिवार का व्रत कर रही थी । तुम्हारी सेविका गई थी परन्तु कथा के दौरान, न ही उठते है और न ही बोलते है, इसीलिये मैं सेविका से नहीं बोल पाई। कहो, सेविका क्यों गई थी।

रानी ने कहा,  हमारे घर अन्न नहीं था। कहते-कहते रानी रो पड़ी। उसने सेविकायों के साथ भूखा रहने की बात अपनी बहन को बताई। रानी की बहन बोली, देखो बृहस्पतिदेव सबकी इच्छा पूर्ण करते है । देखो, तुम्हारे घर भी अन्न रखा हो। यह सुनकर सेविका घर के अन्दर गई तो वहाँ उसे एक घड़ा अनाज का भरा मिल गया। उसे बड़ी हैरानी हुई क्योंकि उसे एक एक बर्तन देख लिया था। उसने बाहर आकर रानी को बताया। सेविका  रानी से कहने लगी, हे रानी,  हमको जब भोजन नहीं मिलता तो भी तो हम व्रत ही करते है, इसलिये इनसे क्यूँ ना व्रत और कथा की विधि पूछ लें और हम भी व्रत किया करेंगे।

सेविका के कहने पर रानी ने अपनी बहन से गुरुवार/बृहस्पतिवार  व्रत के बारे में पूछा। उसकी बहन ने बताया, गुरुवार/बृहस्पतिवार के व्रत में चने की दाल और मुनक्का से विष्णु भगवान का केले की जड़ में पूजन करें  दीपक जलायें। पीला भोजन करें तथा कथा सुनें। इससे गुरु भगवान प्रसन्न होते है, मनोकामना पूर्ण करते है । व्रत और पूजन की विधि बताकर रानी की बहन अपने घर लौट आई।

रानी और सेविका दोनों ने निश्चय किया कि वृहस्पतिदेव भगवान का पूजन जरुर करेंगें। सात रोज बाद जब वृहस्पतिवार आया तो उन्होंने व्रत रखा। घुड़साल में जाकर गुड़ और चना ले आई। उससे केले की जड़ तथा विष्णु भगवान की पूजा की। परंतु पीला भोजन कहाँ से लायें। दोनों बहुत दुखी हो गईं। लेकिन दोनों ने व्रत किया था, इसलिये बृहस्पति भगवान प्रसन्न थे। 

एक साधारण व्यक्ति के रुप में वे दो थालों में सुन्दर पीला भोजन लेकर आए और सेविका को देकर बोले, हे सेविका। यह भोजन तुम्हारे लिये और रानी के लिये है, इसे तुम दोनों ग्रहण करना। सेविका भोजन पाकर बहुत प्रसन्न हुई। उसने रानी को सारी बात बतायी। उसके बाद से वे प्रत्येक वृहस्पतिवार को गुरु भगवान का व्रत और पूजन करने लगी।

बृहस्पतिदेव की कृपा से उन्हें धन प्राप्त हो गया। किन्तु रानी पहले की भांति आलस्य करने लगी। तब सेविका बोली, रानी तुम पहले भी आलस्य किया करती थी और तुम्हें धन के रखने में भी मुश्किल होती थी, इस कारण से सारा धन का नाश हो गया। अब बृहस्पतिदेव की कृपा से धन प्राप्त हुआ है तो फिर तुम आलस्य कर रही हो। बहुत मुश्किलों के बाद हमने यह धन प्राप्त किया है, अब हमें दान-पुण्य भी करना चाहिये। 

तुम भूखे लोगों को भोजन करवाओ, पानी के प्याऊ लगवाओ, ब्राहमणों को दान दो, बावड़ी-कुआं-तालाब का निर्माण कराओ, पाठशाला-मन्दिर बनाओ और ज्ञान का दान दो, जो कन्याएँ कुंवारी हैं उनका विवाह करवाओ। इस प्रकार धन को अच्छे कार्यों में खर्च करो, जिससे तुम्हारे कुल का मान बढ़ेगा तथा तुम्हें स्वर्ग की प्राप्ति हो और पितृ प्रसन्न होंगे। सेविका की बात सुनकर रानी शुभ काम करने लगी। रानी का यश चारों ओर फैलने लगा।

एक दिन रानी और सेविका आपस में विचार करने लगीं कि न जाने राजा किस दशा में होंगें, उनकी कोई खोज खबर भी नहीं है। उन्होंने श्रद्धापूर्वक गुरु (बृहस्पतिदेव) भगवान से कहा की राजा जल्दी वापस आ जाएं। 

एक दिन राजा दुखी होकर जंगल में एक पेड़ के नीचे निश्चित रूप से आसन जमकर बैठ गया वह अपनी दशा को याद करके व्याकुल होने लगा। बृहस्पतिवार का दिन था। अचानक राजा ने देखा कि एकांत जंगल में एक साधु आए, वह साधु के रूप में बृहस्पति भगवान स्वयं  थे।  

लकड़हारे के सामने आकर बोले- हे लकड़हारे! इस एकांत जंगल में तुम किस सोच में डूबे हो? लकड़हारे ने दोनों  हाथ जोड़कर प्रणाम किया और उत्तर दिया – महात्मा जी! आपसब कुछ जानते हैं मैं क्या कहूँ। यह कहकर वह रोने लगा और साधु को आत्म कथा सुनाई। 

महात्मा जी ने कहा –तुम्हारी स्त्री ने बृहस्पति के दिन वीर भगवान का निरादर किया है जिसके कारण रुष्ट होकर तुम्हारी यह दशा कर दी  गई है। अब तुम चिंता को दूर करके मेरे कहने पर चलो तो तुम्हारे सब कष्ट दूर हो जाएंगे और भगवान पहले से भी अधिक धन संपत्ति देंगे। तुम बृहस्पति के दिन पाठ किया करो। राजा  ने कहा मुझे  इतना पैसा नहीं मिलता जिससे भोजन करने के उपरान्त कुछ बचा सकूँ। मैंने रात्री में अपनी स्त्री को व्याकुल देखा है। मेरे पास कुछ भी नहीं जिससे उसकी खबर मंगा सकूँ।  

साधु ने कहा- हे लकड़हारे ! तुम किसी बात की चिन्ता मत करो। बृहस्पतिवार के दिन तुम रोजाना की तरह लकड़ियाँ लेकर शहर को जाओ। तुमको रोज से दुगुना धन प्राप्त होगा जिससे तुम भली-भाँति भोजन कर लोगे तथा बृहस्पतिदेव की पूजा का सामान भी आं जायेगा इतना कहकर साधु अन्तर्ध्यान हो गए। 

धीरे-धीरे समय व्यतीत होने पर फिर वही बृहस्पतिवार का दिन आया। लकड़हारा जंगल से लकड़ी काटकर किसी शहर में बेचने गया उसे उस दिन और दिन से अधिक पैसा मिला राजा ने चना गुड़ आदि लाकर गुरूवार का व्रत किया। उस दिन से उसके सभी क्लेश दूर हुए परन्तु जब दुबारा गुरूवार का दिन आया तो बृहस्पतिवार का व्रत करना भूल गया इस कारण बृहस्पति भगवान नाराज हो गए।

गुरुवार के उस दिन, उस नगर के राजा ने एक बड़ा यज्ञ करवाया तथा शहर में यह ऐलान करवा दिया कि कोई भी मनुष्य घर पर भोजन न बनावे न आग जलावे समस्त जनता मेरे यहाँ भोजन करने आवे। इस आज्ञा को जो न मानेगा उसके लिए फांसी की सजा दी जाएगी इस तरह की घोषणा सम्पूर्ण नगर में करवा दी गई। 

राजा के कहे अनुसार  के सभी लोग भोजन करने गए। लेकिन लकड़हारा कुछ देर से पहुँचा इसलिए राजा उसको अपने साथ घर लिवा ले गए और ले जाकर भोजन करा रहे थे तो रानी की दृष्टि उस खूँटी पर पड़ी जिस पर उसका हार लटका हुआ था वह वहाँ पर दिखाई न दिया। रानी ने निश्चय किया कि मेरा हार इस मनुष्य ने चुरा लिय है। उसी समय पुलिस को बुलाकर उसको जेल खाने में डलवा दिया।

जब लकड़हारा जेल खाने में पड़ गया और बहुत दुखी होकर विचार करने लगा कि न जाने कौन से पूर्व जन्म के कर्म से मेरे लिए दुःख प्राप्त हुआ है और उसी साधु को याद करने लगा जो कि जंगल में मिला था। उसी समय तत्काल बृहस्पतिदेव साधु के रूप में प्रकट हो और उसकी दशा को देखकर कहने लगे अरे मूर्ख ! तूने बृहस्पतिदेव की कथा नहीं करी इस कारण तुझे दुःख प्राप्त हुआ है। अब चिन्ता मत कर बृहस्पतिवार के दिन जेल खाने के दरवाजे पर चार पैसे पड़े मिलेंगे। उनसे तू बृहस्पतिदेव की पूजा करना तेरे सभी कष्ट दूर हो जायेंगे।

बृहस्पति के रोज उसे चार पैसे मिले। लकड़हारे ने कथा कही उसी रात्रि को बृहस्पतिदेव ने उस नगर के राजा को स्वप्न में कहा- हे राजा ! तुमने जिस आदमी को जेल खाने में बन्द कर दिया है वह निर्दोष है। वह राजा है उसे छोड़ देना रानी का हार उसी खूँटी पर लटका है अगर तू ऐसा नहीं करेगा तो मैं तेरे राज्य को नष्ट कर दूगाँ। इस तरह रात के सपने को देखकर जब राजा सुबह उठा और खूँटी पर हार टंगा हुआ देखा तो उसने लकड़हारे को बुलाकर क्षमा माँगी तथा लकड़हारे को सुन्दर वस्त्र व आभूषण भेंट देकर विदा किया। बृहस्पतिदेव की आज्ञानुसार राजा अपने नगर को चल दिया।

राजा जब अपने नगर के निकट पहुँचा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। नगर में पहले से अधिक बाग, तालाब और कुएँ तथा बहुत-सी धर्मशाला मन्दिर आदि बन गई हैं। राजा ने पूछा – यह किसका बाग और धर्मशाला है तब नगर के सब लोग कहने लगे  यह सब रानी और सेविका के हैं। तो राजा को आश्चर्य हुआ और गुस्सा भी आया। 

जब रानी ने यह खबर सुनी कि राजा आ रहे हैं। तो उसने सेविका से कहा कि हे सेविका ! देख राजा हमे  बहुत  बुरी हालत में छोड़कर गये थे। हमारी ये  हालत देखकर राजा  वापस लौटकर चले ना जायें इसलिए तू  द्वार पर खड़ी हो जा, आज्ञा के अनुसार सेविका द्वार  पर खड़ी हो गई राजा आए तो उन्हें अपने साथ लिवा लाई। तब उन्होंने कहा हमें यह सब धन बृहस्पतिदेव के इस व्रत के प्रभाव से प्राप्त हुआ है।

राजा ने निश्चय किया कि सात रोज बाद तो सभी बृहस्पति देव का पूजन करते हैं परन्तु रोजाना दिन में तीन बार कहानी कहा करूँगा रोज व्रत किया करूँगा। अब हर समय राजा के दुपट्टे में चने की दाल बँधी रहती तथा दिन में तीन बार कहानी कहता। एक दिन राजा ने सोचा  कि चलो अपनी बहन के यहाँ हो आवें। यह सोचकर राजा घोड़े पर सवार होकर अपनी बहन के यहाँ जाने लगा।

रास्ते  में राजा ने  देखा कि कुछ आदमी एक मुर्दे को लेकर जा रहे हैं उनको  रोककर राजा ने बोला –  भाईयों, मेरी बृहस्पतिदेव की कहानी सुन लो वे बोले लो हमारा तो आदमी मर गया है इसको अपनी कथा की पड़ी है परन्तु कुछ आदमी बोले अच्छा कहो हम तुम्हारी कथा भी सुनेंगे। राजा ने दाल निकाली और जब कथा आधी हुई थी कि मुर्दा हिलने लग गया। और जब कथा समाप्त हो गई तो राम-राम करके मनुष्य उठकर खड़ा हो गया।

आगे रास्ते  में राजा को  एक किसान खेत में हल चलाता हुआ मिला। राजा ने उसे देखकर बोला- भईया , तुम मेरी बृहस्पतिदेव की कथा सुन लो। किसान बोला जब तक मैं तेरी कथा सुनूंगा तब तक चार हरैया और जोत लूंगा जा अपनी कथा किसी और को सुनाना, इस तरह राजा आगे चलने लगा राजा के हटते ही बैल पछाड़ खाकर गिर गए तथा उसके पेट में बड़ी जोर का दर्द होने लगा उस समय उसकी माँ खाना लेकर आई तो उसने पुत्र से सब हाल पूछा और बेटे ने अपना सभी हाल माँ को कह दिया।  

तो बुढ़िया भागते हुए राजा  के पास गई और उससे बोली कि मैं तेरी कथा सुनूंगी तू अपनी कथा मेरे खेत पर चलकर ही कहना। राजा ने बुढ़िया के खेत पर जाकर कथा कही जिसके सुनते ही वह बैल खड़े हो गए और किसान का  पेटदर्द भी बन्द हो गया।

जब अपनी बहन के घर राजा पहुँचा तो बहन ने भाई की खूब आवभगत की। दूसरे दिन सुबह  राजा जगा तो उसने देखा कि सभी  लोग भोजन ग्रहण  कर रहे हैं। राजा ने अपनी बहन से कहा कि ऐसा कोई मनुष्य है जिसने भोजन नहीं किया हो मेरी वृहस्पतिदेव की कथा सुन ले। बहिन – हे भैया! यह देश ऐसा ही है पहले यहाँ लोग भोजन करते हैं बाद में अन्य काम करते हैं अगर कोई पड़ोस में हो तो देख आऊँ। 

वह ऐसा कहकर देखने चली गई परन्तु उसे कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिला जिसने भोजन न किया हो अंत में वह एक कुम्हार के घर गई जिसका लड़का बीमार था। उसे मालूम हुआ कि उनके यहाँ तीन रोज से किसी ने भोजन नहीं किया है रानी ने अपने भाई की कथा सुनने के लिए कुम्हार से कहा वह तैयार हो गया। राजा ने वहाँ जाकर गुरुवार/ बृहस्पतिवार व्रत  की कथा कही जिसको सुनकर कुम्हार का लड़का ठीक हो गया। अब हर जगह राजा की प्रशंसा होने लगी।

एक दिन राजा ने बहन से कहा कि हे बहन! मैं  अपने घर को जाऊंगा,  तुम भी जाने को तैयार हो जाओ राजा की बहन अपनी सास से बोली,  सास ने कहा हाँ चली जाओ ,  किन्तु अपने बच्चों  को मत ले जाना क्योंकि तेरे भाई के कोई औलाद नहीं है। बहन ने अपने भाई से कहा- हे भइया! मैं तो चलूंगी परन्तु कोई बालक नहीं जाएगा राजा बोला जब कोई बालक नहीं चलेगा, तब तुम क्या करोगी।

बड़े दुखी मन से राजा अपने नगर को लौट आया। राजा ने अपनी रानी से कहा हम निरवंशी राजा हैं हमारा मुहँ देखने का धर्म नहीं है और कुछ भोजन आदि नहीं किया। रानी बोली- हे प्रभो! बृहस्पतिदेव ने हमें सब कुछ दिया है हमें औलाद अवश्य देंगे उसी रात को बृहस्पतिदेव ने राजा से स्वप्न में कहा- हे राजा उठ सभी सोच त्याग दे तेरी रानी गर्भवती है। राजा की यह बात जानकर बहुत खुशी हुई।  

नौ महीने में रानी के एक सुन्दर पुत्र पैदा हुआ तब राजा बोला— रानी, स्त्री बिना भोजन के रह सकती है बिना कहे नहीं रह सकती जब मेरी बहिन आवे तुम उससे कुछ कहना मत रानी ने सुनकर हाँ कर दिया। जब राजा की बहिन को यह शुभ समाचार मिला तो वह बहुत प्रसन्न हुई तथा बधाई लेकर अपने भाई के घर यहाँ आई, तभी रानी ने राजा की बहन से कहा कि जब भाई ला रहे थे तब तो उनके साथ नहीं आई और अब भागी-भागी बिना बुलाए ही आ गई।  

राजा की बहन बोली- भाभी मैं इस प्रकार न कहती तो तुम्हें औलाद कैसे मिलती। बृहस्पतिदेव ऐसे ही हैं, जैसी जिसके मन में कामनायें हैं, सभी को पूर्ण करते हैं, जो सच्ची भावना से  गुरुवार व्रत करता है और  कथा पढ़ता है अथवा सुनता है बृहस्पति भगवान उसकी इच्छाएँ  पूर्ण करते हैं।  बृहस्पति भगवान उसकी हमेशा रक्षा करते हैं। संसार में सद्भावना से  बृहस्पति भगवान का का पूजन और व्रत करके सच्चे हृदय से उसका ध्यान  करते हुए उनका गुणगान करना चाहिए। 

बृहस्पतिवार व्रत कथा एवं आरती - बृहस्पतिदेव की कथा

एक समय में एक ब्राह्मण था, वह बहुत गरीब  था। उसके सन्तान नहीं थी। उसकी पत्नि  बहुत मलीनता से रहती थी। वह स्नान नही करती थी और  किसी भी देवता की पूजा  भी नही  करती थी। इससे ब्राह्मण देवता बड़े दुःखी थे बेचारे बहुत कुछ कहते थे किन्तु उसका कुछ परिणाम न निकला। भगवान की कृपा से ब्राह्मण की स्त्री के कन्या पैदा हुई ।

कन्या बड़ी होने पर प्रातः स्नान करके विष्णु भगवान का जाप व बृहस्पतिवार का व्रत करने लगी। अपने पूजन-पाठ को समाप्त करके स्कूल जाती तो अपनी मुट्ठी में जौ भरके ले जाती और पाठशाला के मार्ग में ढोलती जाती। जब ये जौ स्वर्ण के हो जाते तो लौटते समय उनको बीन कर घर को ले आती थी।

वह  बालिका एक दिन सोने के जौ को सूप में फटककर साफ कर रही थी तब उसके माँ  ने देख लिया और कहा  बेटी, सोने के जौ के लिए सोने का सूप होना चाहिए। दूसरे दिन बृहस्पतिवार था कन्या ने व्रत रखा और बृहस्पतिदेव से प्रार्थना करके कहा- मैंने आपकी पूजा सच्चे मन से की हो तो मेरे लिए सोने का सूप दे दो। बृहस्पतिदेव ने उसकी प्रार्थना सुन ली रोजाना की तरह वह कन्या जौ फैलाती हुई जाने लगी जब लौटकर जौ बीन रही थी तो बृहस्पतिदेव की कृपा से सोने का सूप मिला उसे वह घर ले आई और उसमें जौ साफ करने लगी परन्तु उसकी मां का वही ढंग रहा।

एक दिन की बात है कि वह कन्या सोने के सूप में जौ साफ कर रही थी। उस समय उस शहर का राजपुत्र वहां से होकर निकला। इस कन्या के रूप और कार्य को देखकर उसपर मोहित हो गया।  घर आकर भोजन, जल कुछ ग्रहण नहीं किया और दु:खी होकर लेट गया। 

राजा को जब इस बात की जानकारी हुई तो अपने प्रधानमंत्री को अपने साथ लेकर राजकुमार के  पास गए और बोले,  बेटा तुम्हें किस बात की परेशानी  है, किस ने तुम्हारा अपमान किया है अथवा और कोई  कारण हो तो बताओ  मैं वही काम करूंगा , जिससे तुम खुश हो जाओ। अपने पिता की बाते सुनकर  राजकुमार  बोला मुझे आपकी वजह से किसी बात का कष्ट नहीं है , किसी ने भी मेरा अपमान नहीं किया है, किन्तु मैं उससे  विवाह करना चाहता हूँ जो  लड़की सोने के सूप में जौ को  साफ कर रही थी।

यह सुनकर राजा सोच  में पड़ गया और बोला बेटा, इस तरह की कन्या का पता तुम्हीं लगाओ मैं उसके साथ तेरा विवाह अवश्य ही करवा दूँगा राजकुमार ने उस लड़की के घर का पता बतलाया तब मन्त्री उस लड़की के घर गए और ब्राह्मण देवता को सभी हाल बतलाया। ब्राह्मण देवता राजकुमार के साथ अपनी कन्या का विवाह करने के लिए तैयार हो गए तथा विधि-विधान के अनुसार ब्राह्मण की कन्या का विवाह राजकुमार के साथ करा दिया गया।

कन्या के घर से जाते ही पहले की भाँति उस ब्राह्मण देवता के घर में गरीबी का निवास हो गया। अब भोजन के लिए भी अन्न बड़ी मुश्किल से मिलता था। एक दिन दुःखी होकर ब्राह्मण देवता अपनी पुत्री के पास गए। बेटी ने पिता की दुःखी अवस्था को देखा और अपनी माँ का हाल पूछा। तब ब्राह्मण ने सभी हाल कहा। कन्या ने अपने पिता को बहुत-सा धन  दिया। इस प्रकार ब्राह्मण का कुछ समय सुख से व्यतीत हो गया।

कुछ दिन बाद फिर वही हाल हो गया। ब्राह्मण फिर अपनी कन्या के यहाँ गया और सारा हाल कहा तो लड़की बोली – हे पिताजी ! आप माताजी को यहाँ लिवा लाओ। मैं उन्हें विधि बता दूँगी जिससे गरीबी दूर हो जाए। वह ब्राह्मण देवता अपनी स्त्री को साथ लेकर पहुँचे तो अपनी माँ को समझाने लगी- माँ तुम प्रातःकाल प्रथम स्नानादि करके विष्णु भगवान का पूजन करो तो सब दरिद्रता दूर हो जावेगी। परन्तु उसकी माँ ने एक भी बात नहीं मानी और सुबह उठकर अपनी पुत्री के घर का  झूठा खा लेती थी।

इससे उसकी पुत्री को भी बहुत गुस्सा आया और एक रात को कोठरी से सभी सामान निकाल दिया और अपनी माँ को उसमें बंद कर दिया। प्रातः काल उसे निकाला तथा स्नानादि कराके पाठ करवाया तो उसकी माँ की बुद्धि ठीक हो गई और फिर प्रत्येक बृहस्पतिवार को व्रत रखने लगी। इस व्रत के प्रभाव से उसके माँ बाप बहुत ही धनवान और पुत्रवान हो गए और बृहस्पति जी के प्रभाव से इस लोक के सुख भोगकर स्वर्ग को प्राप्त हुए। ॥ बोलो बृहस्पतिदेव की जय। विष्णु भगवान की जय ।।

बृहस्पतिवार व्रत कथा एवं आरती - आरती

ॐ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा। छिन छिन भोग लगाऊं कदली फल मेवा ॥ ॐ ॥

तुम पूर्ण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी। जगत पिता जगदीश्वर तुम सबके स्वामी ॥ ॐ॥

चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता। सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता ॥ ॐ ॥

तन, मन, धन अर्पणकर जो शरण पड़े। प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े ॥ ॐ ॥

दीन दयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी। पाप दोष सब हर्ता, भव बन्धन हारी ॥ ॐ ॥

सकल मनोरथ दायक, सब संशय तारो। विषय विकार मिटाओ सन्तन सुखकारी ॥ ॐ ॥

जो कोई आरती तेरी प्रेम सहित गावे। जेष्टानन्द आनंद कर सो निश्चय पावे ॥ ॐ ॥

सब बोलो विष्णु भगवान की जय। बोलो बृहस्पति देव भगवान की जय ॥ ॐ ॥

आशा करते हैं यह ब्लॉग, “बृहस्पतिवार व्रत कथा एवं आरती (Brihaspativar Vrat Katha & Aarti)” आपके लिए लाभकारी सिद्ध होगा।

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