
शिव तांडव स्तोत्रम् (Shiv Tandav Stotram )
शिव तांडव स्तोत्र का उल्लेख प्राचीन काल से मिलता है, लेकिन यह मुख्य रूप से त्रेतायुग के समय से जुड़ा हुआ है। इसका रचनाकाल सटीक रूप से ज्ञात नहीं है, लेकिन इसे बहुत प्राचीन माना जाता है। इस ब्लॉग “शिव तांडव स्तोत्रम् (Shiv Tandav Stotram)” शिव तांडव स्त्रोत के बारे में बताएंगे।
यह स्तोत्र शिव के रौद्र और तांडव रूप की स्तुति करता है। इसमें भगवान शिव की शक्ति, सौंदर्य, और उनकी अनंत महिमा का वर्णन किया गया है। संस्कृत में रचित यह स्तोत्र अपनी छंदबद्धता और काव्य सौंदर्य के कारण अत्यधिक प्रसिद्ध है।
शिव तांडव स्तोत्र की रचना लंकापति रावण ने की थी। रावण को शिव का महान भक्त माना जाता है। वह भगवान शिव की आराधना के लिए अपने संगीत और कविता कौशल का उपयोग करता था।
रावण ने यह स्तोत्र भगवान शिव को प्रसन्न करने और अपनी भक्ति प्रदर्शित करने के लिए लिखा था। कहा जाता है कि रावण ने अपने अहंकार में आकर कैलाश पर्वत को उठाने का प्रयास किया। इससे भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने पैर के अंगूठे से कैलाश को दबा दिया। इस दबाव से रावण का हाथ पर्वत के नीचे दब गया। पीड़ा से छटपटाते हुए रावण ने अपने वेदना को भक्ति और स्तुति में परिवर्तित कर यह स्तोत्र रचा।
कहते है कि भगवान शिव बहुत भोले स्वभाव के कारण भक्तों से जल्दी ही प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान शिव का एक और बहुत ही शक्तिशाली स्तोत्र है, रुद्राष्टकम। यह तुलसीदास जी द्वारा रचित शिव की स्तुति का सबसे शक्तिशाली स्तोत्र है।
शिव तांडव स्तोत्रम् (Shiv Tandav Stotram ): अर्थ
जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावित स्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं
चकार चण्ड ताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम्॥१॥
Jata tavi galajjala pravaha pavita sthale
Gale’valambya lambitam bhujanga tunga malikam।
Damad damad damaddamanninaada vaddamarvayam
Chakara chanda tandavam tanotu nah Shivah Shivam॥1॥
अर्थ: भगवान शिव के बालों में से गिरते जल से उनका कंठ पवित्र है, और उनके गले में है जो सर्प वो हार की तरह लटका हुआ है, और डमरू से डमट् डम- डम की ध्वनि निकल रही है, भगवान शिव तांडव नृत्य कर रहे हैं, वे हमको संपन्नता प्रदान करते हैं।
जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी
विलोल वीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्जलल्ललाट पट्टपावके
किशोर चन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम॥२॥
Jata kata hasam bhrama bhramannilimba nirjhari
Vilola vichivalari virajamana murdhani।
Dhagaddhagaddhagajjvalallalata patta pavake
Kishora chandrashekhare ratih pratikshanam mama॥2॥
अर्थ: मेरी भगवान शिव में गहरी आस्था है, उनके सिर दिव्य गंगा नदी की बहती लहरों की धाराओं से विराजमान है, जो उनके बालों की उलझी हुई जटाओं की गहराई में विचर रही हैं, जिनके मस्तक पर चमकदार अग्नि धधक रही है , और जिन्होंने अपने सिर पर अर्ध-चंद्र का आभूषण धरण कर रखा हैं।
धराधरेंद्र नंदिनी विलास बन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्त सन्तति प्रमोद मानमानसे।
कृपा कटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि॥३॥
Dharadharendra nandini vilasa bandhu bandhura
Sphuraddiganta santati pramoda mana manase।
Krupa kataksha dhorani niruddha durdharapadi
Kwachid digambare mano vinodametu vastuni॥3॥
अर्थ: सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में विचरने वाले सारे प्राणी जिनके मन में निवास करते हैं, जो पर्वतराज की पुत्री हैं, जिनकी अर्धांगिनी पार्वती से सदैव आनंदचित्त रहते है , जो अपनी कृपा दृष्टि से असाधारण विपत्तियों को नियंत्रित करते हैं, जो हर जगह व्याप्त है, और जो सभी लोकों को अपनी पोशाक के रूप में धारण करते हैं। उन भगवान शिव की उपासना में मेरे मन को सदैव खुशी मिलती हैं ।
जटा भुजङ्ग पिङ्गल स्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रव प्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि॥४॥
Jata bhujanga pingala sphuratphana maniprabha
Kadamba kunkuma drava pralipta digvadhu mukhe।
Madandha sindhura sphuratvaguttariya medure
Mano vinodamadbhtam bibhartu bhuta bhartari॥4॥
अर्थ: मैंउन भगवान शिव की भक्ति में हमेशा लीन रहूँ , जो सारे जीवन के रक्षक हैं, उनके गले में रेंगते हुए सांपों का फन की मणियाँ चमक रही है, यह प्रकाश केसर के वर्ण के रूप में सभी दिशाओं की देवियों के सुंदर चेहरों पर बिखेर रहा है, जो विशाल हाथी की खाल से बने दुशाले से विभूषित है।
सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः।
भुजङ्गराज मालया निबद्धजाटजूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धुशेखरः॥५॥
Sahasralochana prabhritya shesha lekha shekhara
Prasuna dhuli dhorani vidhusaranghri pithabhuh।
Bhujanga raja malaya nibaddha jatajutakah
Shriyai chiraya jayataam chakora bandhu shekharah॥5॥
अर्थ: वे भगवान शिव हमें चिरकाल के लिए संपन्नता दें, जो चंद्रशेखर है जिनका मुकुट चंद्रमा है, जिनकी जटायें लाल सर्प के हार से बंधे हैं, जिनका पायदान फूलों की धूल के बहने से गहरे रंग का हो गया है, जो इंद्र, विष्णु औरअन्य देवता उन्हें अपने सिर के पुष्प अर्पण करते है।
ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम्।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः॥६॥
Lalata chatvarajvaladdhananjaya sphulinga bha
Nipita pancha sayakam namannilimba nayakam।
Sudha mayukha lekhaya virajamana shekharam
Maha kapali sampade shirojataalamastu nah॥6॥
अर्थ: भगवान शिव से हम सिद्धि प्राप्त करें, जिन्होंने कामदेव को अपने मस्तक के त्रिनेत्र की अग्नि से नष्ट किया था, जो सभी देवताओं के स्वामी हैं , जो आदरणीय हैं, जिनके सिर पर अर्ध-चंद्र और गंगा सुशोभित हैं।
करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल–
द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके।
धराधरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्रचित्रपत्रक–
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम॥७॥
Karala bhala pattika dhagaddhagaddhagajjvala–
Ddhananjaya hutikruta prachanda pancha sayake।
Dharadharendra nandini kuchagra chitra patraka–
Prakalpanaika shilpini trilochane ratirmama॥7॥
अर्थ: मैं उन भगवान शिव उपासना करता हूँ , जो त्रिनेत्री हैं, जिन्होंने कामदेव को अपनी मस्तक की ज्वाला से भस्म कर दिया, उनके मस्तक पर अग्नि धधकती हैं , वे ऐसे कलाकार है जो पर्वतराज की पुत्री पार्वती के वक्षस्थल के अग्रभाग से , विभिन्न प्रकार पत्र रचना, सजावटी रेखाएं खींचने में निपुण हैं।
नवीनमेघ मण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः॥८॥
Naveenmegha mandali nirudh durdhrsfurat
Kuhunishithi nitamah prabdh badhkandrah।
Nilimp nirjhari dharstunotu kriti sindhurah
Kala nidhan bandhurah shriyam jagaddhurandhrah॥8॥
अर्थ: वह भगवान शिव हमें संपन्नता प्रदान करे , वे ही पूरे संसार के पालनहार हैं, जिनकी शोभा चंद्रमा है, जिनके पास दिव्य गंगा नदी है, जिनकी कंठ मे नवीन मेघमालाएं से घिरी अमावस्या की अर्धरात्रि फैलते अंधकार की तरह श्यामल है। जो हाथी की चर्म लपेटे हुए है।
प्रफुल्लनीलपङ्कज प्रपञ्चकालिमप्रभा–
वलम्बिकण्ठकन्दली रुचिप्रबद्धकन्धरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे॥९॥
Praphulla nila pankaja prapanchakali maprabha–
Valambi kantha kandali ruchiprabaddha kandharam।
Smarachchidam purachchidam bhavachchidam makhachchidam
Gajachchidandhakachchidam tamantakachchidam bhaje॥9॥
अर्थ: मैं उन भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं, जिनका कंठ खिले नीले कमल के फूलों की प्रभा से सुशोभित हैं , जो कामदेव को मारने वाले हैं, जिन्होंने त्रिपुर, अंधक दैत्य, हाथियों और सांसारिक जीवन के बंधनों का अंत किया जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया।
अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी
रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणामधुव्रतम्।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे॥१०॥
Akharnasarva mangala kala kadamba manjari
Rasapravaha madhuri vijrimbhana madhu vratam।
Smarantakam purantakam bhavantakam makhantakam
Gajantakandhakantakam tamantakantakam bhaje॥10॥
अर्थ: मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं, जो अभिमान से रहित पार्वती की कलारूप कदंबमंजरी के बढ़ती हुई माधुरी के पान करने वाले मधुप हैं , जो कामदेव को मारने वाले हैं, जिन्होंने त्रिपुर, बलि, अंधक दैत्य, हाथियों, सांसारिक जीवन के बंधनों का अंत किया, और जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया।
जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजङ्गमश्वस–
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः॥११॥
Jayatvadabra vibrama bhramadbhujangamashvasa–
Dvinirgamadkramasphuratkarala bhalahavyavat।
Dhimiddhimiddhimidhvananmridanga tunga mangala
Dhvanikramapravartita prachanda tandavah Shivah॥11॥
अर्थ: जो ढिमिड ढिमिड बजते हुए मृदंग की तेज आवाज के साथ भगवान शिव का तांडव नृत्य लय में है, नाग की सांस के कारण, भगवान शिव के महान मस्तक पर जो अग्नि विराजमान है, वो अग्नि फैल रही है , आकाश में चारों ओर घूम रही है।
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर–
गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे॥१२॥
Drishad vichitra talpayor bhujanga mauktikasrajor–
Garishtha ratnaloshtayoh suhridvipaksha pakshayoh।
Trinara vindachakshushoh praja maheemahendrayoh
Samam pravartayanmanah kada sadashivam bhaje॥12॥
अर्थ: मैं भगवान सदाशिव की पूजा कब कर सकूंगा, शाश्वत शुभ देवता, जो रखते हैं सम्राटों और लोगों के प्रति समभाव दृष्टि, घास के तृण और कमल के प्रति, मित्रों और शत्रुओं के प्रति, सर्वाधिक मूल्यवान रत्न और धूल के ढेर के प्रति, सांप और हार के प्रति और विश्व में विभिन्न रूपों के प्रति?
कदा निलिम्पनिर्झरी निकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमञ्जलिं वहन्।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मन्त्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम्॥१३॥
Kada nilimpa nirjhari nikunja kotare vasan
Vimuktadurmatih sada shirahsthamanjalim vahan।
Vimuktalola lochano lalama bhalalagnakah
Shiveti mantramuchcharan kada sukhi bhavamyaham॥13॥
अर्थ: मैं कब प्रसन्न हो सकता हूं, दिव्य गंगा नदी के निकट निकुंज में रहते हुए, अपने हाथों को बांधकर अपने सिर पर रखे हुए, अपने कुविचारों को धोकर त्याग करके, शिव मंत्र का उच्चारण करते हुए, महान ललाट और जीवंत नेत्रों वाले भगवान शिव को समर्पित ?
निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥ १४ ॥
Nilimp nathnagri kadamb moulmallika
Nigumph nirbhkshranm dhushnikaamnoharah।
Tanotu no manomudam vinodininmhanisham
Parishraya param padam tadangjatvisham chayah॥ 14 ॥
अर्थ: सिर में गुथे पुष्पों की मालाओं से झड़ते हुए सुगंधमय राग से मनोहर परम शोभा के धाम महादेव जी के अंगों की सुन्दरता आनन्दयुक्त हमारे मन की प्रसन्नता को सर्वदा बढ़ाती रहे।
प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥१५॥
Prachand vadvaanal Prabhashubhpracharini
Mahashthsidhikamini janavahut jalpana।
Vimukt vaam lochano vivahkaalikdhwanih
Shiveti mantrabhushgo jagjjyaay jaaytam ॥15॥
अर्थ: प्रचण्ड बड़वानल के समान पापों कोभस्म करने में प्रचंड अमंगलों का विनाश करने वाले अष्ट सिद्धियों तथा चंचल नेत्रों वाली कन्याओं से शिव विवाह समय गान की मंगलध्वनि सब मंत्रों में परमश्रेष्ठ शिव मंत्र से पूरित संसारिक दुःखों को नष्ट कर विजय पायें।
इमं हि नित्यमेव मुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिन्तनम्॥१६ ॥
Imam hi nityameva muktamuttamottamam stavam
Pathansmaranbruvannaro vishuddhimetisantatam।
Hare gurau subhaktimashu yati nanyatha gatim
Vimohanam hi dehinam sushankarasya chintanam॥16 ॥
अर्थ: इस स्तोत्र को, जो भी स्वयं पढ़ता है, स्मरण करता है और दूसरों को सुनाता है, वह मनुष्य सदैव के लिए शुद्ध हो जाता है और महान गुरु शिव की भक्ति उसे प्राप्त होती है। इस भक्ति के लिए कोई दूसरा मार्ग नहीं है। बस शिव का विचार ही सब भ्रमों को दूर कर देता है।
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
यः शम्भुपूजनमिदं पठति प्रयत्नात्।
शिवः स्वयं तस्य ददाति शिवं सखायं
विध्यं हि लोभनमिति प्रणमामि मोहात्॥१७ ॥
Poojava sana samaye dashavaktragitam
Yah shambhupoojanamidam pathati pryatnat।
Shivah svayam tasya dadati shivam sakayam
Vidhyam hi lobhamiti pranamami mohat॥17 ॥
अर्थ: सायंकाल में पूजा समाप्त होने पर रावण द्वारा रचित इस शिव स्तोत्र का पाठ जो भी करता है, भगवान शिव उसको घोड़े, हाथी आदि हमेशा रहने वाली धन संपदा प्रदान करते हैं।

शिव तांडव स्तोत्र का नियमित पाठ करने से भक्त को भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। यह स्तोत्र विशेष रूप से शिवरात्रि और सोमवार को पढ़ा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसका पाठ करने से मानसिक शांति, भौतिक सुख और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। इस ब्लॉग “शिव तांडव स्तोत्रम् (Shiv Tandav Stotram)”ने आपको आवश्यक जानकारी दी होगी।