कौन हैं शनिदेव ? जानिए शनिदेव की कथाएँ .. 


कौन हैं शनिदेव ? जानिए शनिदेव की कथाएँ..

शनि देव हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं, जिन्हें न्याय का देवता और कर्मफल दाता कहा जाता है। इस ब्लॉग “ कौन हैं शनिदेव ? जानिए शनिदेव की कथाएँ ..” में हम शनिदेव की कुछ कथाओं का वर्णन करेंगे ।   

वे नवग्रहों में से एक हैं और उनके प्रभाव को ज्योतिष शास्त्र में अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। शनि देव को विशेष रूप से व्यक्ति के कर्मों के अनुसार फल देने वाले देवता माना जाता है। उनकी दृष्टि को क्रूर कहा गया है, लेकिन वे वास्तव में न्यायप्रिय देवता हैं, जो व्यक्ति के कर्मों के अनुसार ही सुख और दुःख प्रदान करते हैं।

शनि देव को कर्मों का न्यायाधीश माना जाता है।उनकी दृष्टि को अत्यंत प्रभावशाली और वक्र कहा जाता है। शनि की साढ़े साती और ढैय्या का विशेष प्रभाव माना जाता है। शनि देव का वाहन कौवा या गिद्ध बताया जाता है। उनके हाथों में धनुष, त्रिशूल और गदा रहती है, जो उनके शक्ति और न्याय का प्रतीक है।

शनि देव की उपासना शनिवार के दिन की जाती है और काली चीजों का दान शुभ माना जाता है। शनिदेव पर सरसों का तेल चढ़ाया जाता हैं। सरसों के तेल का दीपक भी जलाया जाता हैं। शनि देव की पूजा से व्यक्ति के जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और न्याय की प्राप्ति होती है।

कौन हैं शनिदेव ? जानिए शनिदेव की कथाएँ..

कौन हैं शनिदेव ? जानिए शनिदेव की कथाएँ.. - शनिदेव की जन्म कथा-

शनिदेव के जन्म की कथा पुराणों में वर्णित है। शनिदेव का जन्म ज्येष्ठ माह की कृष्ण अमावस्या के दिन हुआ था।लेकिन कुछ ग्रंथों में शनिदेव का जन्म भाद्रपद मास की शनि अमावस्या को भी माना जाता हैं ।  शनिदेव के पिता सूर्यदेव और माता छाया थीं। सूर्यदेव की पत्नी संज्ञा थीं, लेकिन अधिक तेज के कारण संज्ञा सूर्यदेव के तेज को सहन नहीं कर पा रही थीं। वह सूर्यदेव की अग्नि को कम करने की सोचने लगी । उनके वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना तीन संतानें हुई।  इस कारण उन्होंने अपनी छाया (प्रतिछाया) को सूर्यदेव के पास छोड़ दिया और स्वयं तपस्या के लिए चली गईं।

छाया ने अपने तपस्वी स्वभाव और कठोर ध्यान के कारण सूर्यदेव की सेवा करते हुए शनिदेव को गर्भ में धारण किया। जब शनिदेव गर्भ में थे, तब माता छाया भगवान शिव की कठोर तपस्या कर रही थीं। माता के इस कठोर तप और उपवास के कारण शनिदेव का रंग जन्म से ही श्यामवर्ण (काला) हो गया।

जब शनिदेव का जन्म हुआ, तो उनका रंग काला देखकर सूर्यदेव ने उन्हें अपनाने से इंकार कर दिया और उनकी माता छाया पर भी संदेह किया। इस अपमान और अन्याय से क्रोधित होकर शनिदेव ने अपने पिता सूर्यदेव को श्राप दिया कि उनका तेज क्षीण हो जाएगा।

श्राप के प्रभाव से सूर्यदेव कमजोर पड़ गए और देवताओं ने शनिदेव को शांत करने के लिए उनकी आराधना की। शनिदेव ने तब अपने श्राप को वापस लिया और सूर्यदेव का तेज पुनः लौट आया।

कौन हैं शनिदेव ? जानिए शनिदेव की कथाएँ.. - शनिदेव और हनुमान जी की कथा –

पहली कथा –

हनुमान जी और शनि देव की एक कथा में बताया गया है कि हनुमान जी ने शनि देव का घमंड चूर कर दिया। यह कथा शनि देव के अहंकार और हनुमान जी की शक्ति का परिचायक है।

 एक बार शनि देव को अपने प्रभाव और शक्ति का बहुत घमंड हो गया था। वे अपने प्रभाव का प्रदर्शन करते हुए हर किसी की कुंडली में अपना अशुभ प्रभाव डालते थे और उन्हें कष्ट पहुंचाते थे। शनि देव ने सोचा कि वे हनुमान जी की परीक्षा लेंगे और उनके जीवन में भी अशुभता का प्रभाव डालेंगे।

शनि देव हनुमान जी के पास आए और बोले, “मैं आपकी कुंडली में आकर अपना प्रभाव डालूंगा। कोई मुझसे बच नहीं सकता।”

हनुमान जी ने उनकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया और कहा कि मैं तो श्री राम का भक्त हूँ ,और वह राम का ध्यान करने लगे।

शनि देव ने घमंड में आकर हनुमान जी के सिर पर बैठने का निर्णय लिया। जैसे ही शनि देव हनुमान जी के सिर पर बैठे, हनुमान जी को अपने सिर पर जोर से खुजली होने लगी ,तो उन्होंने अपने सिर पर गदा से प्रहार किया जिससे शनिदेव जी को चोट लगी, शनिदेव ने कहा यह क्या कर रहे हो तब हनुमान जी ने कहा मुझे खुजली हो रही हैं  ,जब मुझे खुजली होती हैं तो में यही करता हूँ। 

ऐसा उन्होंने कई बार किया, जिससे शनिदेव गिर कर उनके पेट पर बैठ गए तब भी खुजली मिटाने के लिए उन्होंने ऐसा ही किया ,बाद मे वह उनके चरणों में गिर गए । फंसे हुए शनि देव ने हनुमान जी से क्षमा मांगी और कहा, “मैंने घमंड में आपकी परीक्षा लेने का निश्चय किया था। अब मैं यह स्वीकार करता हूं कि आपकी शक्ति अनंत है। कृपया मुझे मुक्त कर दें।”

हनुमान जी ने शनि देव को सबक सिखाने के बाद मुक्त कर दिया। शनिदेव को पीड़ा के कारण असहनीय दर्द हो रहा था, तब हनुमान जी ने उनके शरीर पर सरसों का तेल लगाया जिनसे वह पीड़ा मुक्त हो गए इस तरह शनिदेव ने कहा कि जो व्यक्ति मुझे शनिवार के दिन सरसों का तेल चढ़ाएगा वह मेरे प्रभाव से मुक्त रहेगा ।

 शनि देव ने वचन दिया, “जो भी आपकी भक्ति करेगा, हनुमान चालीसा का पाठ करेगा, और राम का ध्यान करेगा, मैं उस पर अपनी कुदृष्टि नहीं डालूंगा।”

इस प्रकार, हनुमान जी ने न केवल शनि देव का घमंड चूर किया, बल्कि उन्हें भी यह समझा दिया कि सच्ची भक्ति और विनम्रता ही सबसे बड़ी शक्ति है।

इस कथा से यह संदेश मिलता है कि हनुमान जी की भक्ति करने से शनि की दशा और कुदृष्टि का प्रभाव समाप्त हो जाता है। यही कारण है कि भक्तजन मंगलवार और शनिवार को विशेष रूप से हनुमान जी की पूजा करते हैं।

दूसरी कथा –

शास्त्रों में हनुमान जी और शनि देव से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा और भी है, जो भक्ति, श्रद्धा और भगवान के प्रति समर्पण का अद्भुत उदाहरण है।

एक बार की बात है, जब हनुमान जी लंका दहन करने गए थे। लंका में रावण ने अनेक देवी-देवताओं और नवग्रह को कैद कर रखा था। उनमें शनि देव भी बंदी थे। रावण ने शनि देव को एक संकरे स्थान पर जकड़कर रखा था ताकि वे उसकी कुंडली को प्रभावित न कर सकें।

जब हनुमान जी लंका में रावण की कैद में बंद देवी-देवताओं को मुक्त कर रहे थे, तो उन्होंने शनि देव को भी देखा। शनि देव ने हनुमान जी से अपनी मुक्ति की प्रार्थना की। अपनी कृपा और दया के लिए प्रसिद्ध हनुमान जी ने शनि देव को उस कैद से मुक्त कर दिया।

मुक्त होने के बाद, शनि देव ने हनुमान जी से कहा, “आपने मेरी सहायता की है, इसलिए मैं आपकी भक्ति करने वालों पर अपनी कुदृष्टि नहीं डालूंगा।” साथ ही, उन्होंने वचन दिया कि जो भी व्यक्ति हनुमान चालीसा का पाठ करेगा, उस पर शनि देव की अशुभ दृष्टि का प्रभाव नहीं पड़ेगा।

इस कथा के माध्यम से यह संदेश मिलता है कि हनुमान जी की भक्ति करने से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और शनिदेव का कोप भी शांत रहता है।

कौन हैं शनिदेव ? जानिए शनिदेव की कथाएँ..

इस ब्लॉग “कौन हैं शनिदेव ? जानिए शनिदेव की कथाएँ..” में हमने शनिदेव की कुछ अनजानी कथाओं को बताया है जो की आपका ज्ञान बढ़ाएंगी । और भी रोचक तथ्यों के लिए देखें हमारी वेबसाईट diarybyhomemaker . com


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