भगवान शिव भोलेनाथ के नाम से भी जाने जाते हैं। कहा जाता है की वो बहुत भोले स्वभाव के हैं और बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते है। भगवान शिव हिन्दू धर्म में त्रिदेवों में से एक हैं। भगवान शिव गणेश जी के पिता हैं और माता पार्वती के पति हैं। ईस ब्लॉग, “Rudrashtakam (रुद्राष्टकम): Most powerful Shiv Stotra”, में हम रुद्राष्टकम के बारे में जानेंगे। रुद्राष्टकम भगवान शिव की स्तुति का सबसे शक्तिशाली स्तोत्र है।
रुद्राष्टकम दो शब्दों से मिलकर बना है – १ रुद्र और २ अष्टकम. रुद्र भगवान शिव का स्वरूप है और अष्टकम आठ छंदों का समूह है। यह भगवान शिव की स्तुति में लिखा गया है।
रुद्राष्टकम् की उत्पत्ति की कहानी भगवान शिव और संत तुलसीदास से जुड़ी हुई है। यह कहानी बताती है कि कैसे तुलसीदास जी को इस स्तोत्र की रचना करने की प्रेरणा मिली।
रुद्राष्टकम की उत्पत्ति की कहानी
तुलसीदास जी अपने आराध्य भगवान राम के परम भक्त थे और उन्होंने “रामचरितमानस” की रचना कर भगवान राम की महिमा का विस्तार किया। कहा जाता है कि एक बार तुलसीदास जी वाराणसी (काशी) में भगवान राम के ध्यान में लीन थे। काशी भगवान शिव की नगरी है, और यहाँ भगवान शिव का विशेष प्रभाव है। रुद्राष्टकम, भगवान शिव को समर्पित एक प्रसिद्ध स्तोत्र है, जिसकी रचना गोस्वामी तुलसीदास ने की थी। यह स्तोत्र रामचरितमानस के उत्तरकांड में पाया जाता है। इसकी उत्पत्ति एक रोचक कथा से जुड़ी है।
कहा जाता है कि तुलसीदास जी जब काशी (वाराणसी) की यात्रा पर थे, तब उन्होंने वहाँ विद्वानों और ऋषियों के बीच भगवान शिव की महिमा पर चर्चा सुनी। अपनी भक्ति और भगवान शिव के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए उन्होंने रुद्राष्टकम की रचना की।
इस स्तोत्र के आठ श्लोकों में भगवान शिव के अनंत और निराकार स्वरूप, उनकी महिमा और दिव्यता का वर्णन किया गया है। तुलसीदास ने इसे इतनी भक्ति और प्रेम से लिखा कि यह शिव भक्ति का एक अमूल्य ग्रंथ बन गया।
माना जाता है कि रुद्राष्टकम का पाठ भक्त को शांति, ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति कराता है। यह स्तोत्र विशेष रूप से शिव आराधना और ध्यान के समय पढ़ा जाता है।
भगवान शिव से भेंट
तुलसीदास जी को भगवान राम के दर्शन की तीव्र इच्छा थी। इस कारण उन्होंने काशी में रहकर राम भक्ति की साधना की। भगवान शिव तुलसीदास की राम भक्ति से बहुत प्रभावित हुए और उन्हें अपने भक्त के रूप में स्वीकार किया। माना जाता है कि भगवान शिव ने तुलसीदास से कहा कि अगर तुम मेरे आराध्य श्रीराम का दर्शन करना चाहते हो, तो पहले मुझे प्रसन्न करो।
भगवान शिव की प्रेरणा से तुलसीदास जी ने भगवान शिव को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए रुद्राष्टकम् की रचना की। रुद्राष्टकम् में भगवान शिव के गुण, शक्ति और करुणा का बखान किया गया है। इस स्तोत्र के माध्यम से तुलसीदास जी ने भगवान शिव को उनकी अनंतता और सौम्य स्वरूप में प्रकट किया।
शिव कृपा से राम दर्शन
कहानी में बताया जाता है कि रुद्राष्टकम् के माध्यम से भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने तुलसीदास जी को अपने आराध्य भगवान राम के दर्शन करने का वरदान दिया। शिव की कृपा से तुलसीदास जी को अपने प्रभु श्रीराम का साक्षात् दर्शन हुआ और उनकी तपस्या सफल हुई।
इस प्रकार, रुद्राष्टकम् भगवान शिव की महिमा का गान है और इसे तुलसीदास जी ने भगवान शिव की कृपा पाने और राम के दर्शन का मार्ग प्रशस्त करने के लिए लिखा।
शिव रुद्राष्टकम्: स्तोत्र
“नमामीशमीशान निर्वाण रूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद स्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहम्
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्” ||१ ||
Namami shamishan nirvan roopam,
Vibhum vyapakam brahma-veda-swaroopam।
Nijam nirgunam nirvikalpam nireeham,
Chidakashmakashvasam bhajeham ||1||
अर्थ:
मैं उस शिव की वंदना करता हूँ, जो परम ब्रह्मस्वरूप, सर्वव्यापी और वेदों के सार हैं।वह निराकार, निर्गुण, नित्य अनंत ज्ञानमय और आकाश के समान सर्व व्याप्त हैं । सभी इच्छाओं से मुक्त हैं। वह ब्रह्मांड के आधार और शुद्ध चेतना के स्वरूप हैं।
“निराकारमोंकारमूलं तुरीयं
गिरा ज्ञाने गोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकाल कालं कृपालं
गुणागार संसारपारं नतोऽहम्” ||२ ||
Nirakar monkaar moolam turiyam,
Gira gyane goteetmisham girisham|
Karalam mahakaal kaalam kripaalam
Gunaagar sansaarpaaram natoeham ||2||
अर्थ:
जो निराकार हैं, ओंकार के मूल हैं, और तुरीय (चौथे) अवस्था में स्थित हैं,
जो वाणी, ज्ञान, और इंद्रियों की सीमा से परे हैं, जो गिरीश (पर्वतों के स्वामी) हैं।
जो भयानक (कराल) हैं, महाकाल (समय के भी स्वामी), और काल के भी नाशक हैं,
जो अत्यंत कृपालु हैं, गुणों के भंडार हैं, और संसार सागर से पार कराने वाले हैं,
मैं उन ईश्वर (शिव) को नमन करता हूं।
“तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं
मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम्।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा
लसद्भालबालेन्दु कंठे भुजंगा” ||३||
Tusharaadri sankash gauram gabhiram,
Manobhut koti prabha shree shariram।
Sphuranmauli kallolini charu ganga,
Lasadbhal balendu kanthe bhujanga||3||
अर्थ:
जिनका श्री शरीर करोड़ों कामदेवों के तेज के समान प्रकाशमान है।
जिनके मस्तक पर सुंदर गंगा लहराती हुई शोभा देती है,
जिनके ललाट पर चंद्रमा विराजमान है और कंठ में सर्प का आभूषण है।
“चलत्कुंडलं भ्रू सुनेत्रं विशालं,
प्रसन्नाननं नीलकंठं दयालं।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं,
प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि” ||४||
Chalatkundalam bhru sunetram vishalam,
Prasannananam neelakantham dayalam.
Mrigaadheesha charmaambaram mundamaalam,
Priyam Shankaram sarvanatham bhajaami ||4||
“मैं भगवान शंकर की वंदना करता हूं, जो सबके प्रिय हैं और समस्त प्राणियों के स्वामी हैं।
जिनके कानों में झूलते हुए कुंडल हैं, जिनकी भौहें और नेत्र सुंदर एवं विशाल हैं।
जिनका मुख प्रसन्न है, जिनका गला नीला है और जो करुणा के सागर हैं।
जो मृगराज (शेर) की खाल पहनते हैं और मुण्डों की माला धारण किए हुए हैं।”
“प्रचंडं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखंडं अजं भानुकोटि प्रकाशम्।
त्रयं शूल निर्मूलनं शूलपाणिं
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम्” ||५||
Prachandam prakrishtam praglbham paresham
Akhandam ajam bhanukoti prakasham |
trayam shul nirmulan shulpannim
bhajeham bhawanipatim bhavgamyam ||5||
अर्थ:
जो परमेश्वर हैं, अखंड (अविनाशी) हैं, अजन्मा (अज) हैं, और जिनका प्रकाश करोड़ों सूर्यों के समान है।
जो त्रिशूल से समस्त दुखों और अज्ञान का नाश करते हैं, त्रिशूलधारी हैं,
जो भवानी (देवी पार्वती) के पति और केवल भाव (भक्ति) से ही प्राप्त होने वाले हैं।
“कलातीत कल्याण कल्पांतकारी
सदा सज्जनानंददाता पुरारी।
चिदानंद संदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी” ||६||
Kalateet kalyan kalpantakari
Sada sajjananandadata purari।
Chidanand sandoh mohapahari
Praseed praseed prabho manmathari ||6||
अर्थ:
जो कलाओं से परे हैं, कल्याणकारी हैं और कल्पांत (सृष्टि के अंत) के समय संहारक हैं,
जो सदा सज्जनों को आनंद प्रदान करते हैं, और पुरारी (त्रिपुरासुर का नाश करने वाले) हैं।
जो चिदानंद (आध्यात्मिक आनंद) का भंडार हैं और मोह (भ्रम) का नाश करने वाले हैं,
हे मन्मथ (कामदेव) का दमन करने वाले प्रभु, मुझ पर कृपा कीजिए, कृपा कीजिए।
“न यावद् उमानाथ पादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्।
न तावद् सुखं शांति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम” ||७||
Na yavad umaanath padaravindam
Bhajantih loke pare vaa naranaam।
Na taavad sukham shaanti santapanasham
Praseed prabho sarvabhutadhivasa||7||
अर्थ:
जब तक मनुष्य इस लोक या परलोक में उमानाथ (भगवान शिव) के चरण कमलों का भजन नहीं करते,
तब तक उन्हें सुख, शांति और संतापों का नाश प्राप्त नहीं हो सकता।
हे प्रभु, जो सभी प्राणियों के अधिवास (निवास) हैं, कृपा कीजिए।
“न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोऽहम् सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम्।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो” ||८||
Na jaanami yogam japam naiva poojaam
Nato’ham sada sarvada shambho tubhyam।
Jara janma dukhogha tatapyamaanam
Prabho paahi aapannamameesh shambho ||8||
अर्थ:
मुझे न योग का ज्ञान है, न जप का और न ही पूजा का।
मैं तो सदा, हर समय, आपके चरणों में नतमस्तक हूं, हे शंभु।
जरा (बुढ़ापा), जन्म और दुखों की अग्नि से जलते हुए मुझ दुखी की रक्षा कीजिए।
हे प्रभु, हे ईश, हे शंभो, मैं आपकी शरण में हूं।
“रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हर्तोषये।
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति”
Rudrashtakmidam proktam vipren hartoshaye
Ye pathanti naraa bhaktya tesham shambhuh prasidati
अर्थ:
यह रुद्राष्टकम् एक ब्राह्मण द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कहा गया है।
जो व्यक्ति इसे भक्ति के साथ पढ़ते हैं, उन पर भगवान शंभु प्रसन्न होते हैं।
रुद्राष्टकम के फायदे
रुद्राष्टकम भगवान शिव को समर्पित एक भक्तिपूर्ण स्तोत्र है, जिसे संत तुलसीदास द्वारा रचा गया है। इसे भक्ति के साथ जपने से अनेक आध्यात्मिक और मानसिक लाभ प्राप्त हो सकते हैं।
रुद्राष्टकम के फायदे
रुद्राष्टकम भगवान शिव को समर्पित एक भक्तिपूर्ण स्तोत्र है, जिसे संत तुलसीदास द्वारा रचा गया है। इसे भक्ति के साथ जपने से अनेक आध्यात्मिक और मानसिक लाभ प्राप्त हो सकते हैं। रुद्राष्टकम का जप करने के कई फायदे हैं, जैसे
आध्यात्मिक उन्नति: नियमित जप भगवान शिव के साथ गहरे संबंध को बढ़ाता है, जिससे आध्यात्मिक विकास और प्रबोधन में सहायता मिलती है।
मानसिक शांति: यह मन को शांत करता है, तनाव को कम करता है, और अपनी मधुर और लयबद्ध पंक्तियों के माध्यम से आंतरिक शांति को बढ़ावा देता है।
नकारात्मकता का नाश: यह स्तोत्र दिव्य ऊर्जा का आह्वान करता है, जिससे नकारात्मक विचारों और ऊर्जा को समाप्त करने में मदद मिलती है।
भगवान शिव की कृपा: भक्तों का मानना है कि सच्चे मन से इसका पाठ भगवान शिव की कृपा को आकर्षित करता है, इच्छाओं को पूर्ण करता है और सुरक्षा प्रदान करता है।
स्वास्थ्य लाभ: जप की ध्वनि तरंगें व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालती हैं।
मोक्ष का मार्ग: रुद्राष्टकम का जप करने से भक्त जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति (मोक्ष) की प्राप्ति की कामना करते हैं।
भक्ति और ध्यान के साथ इसका जप इन लाभों को और अधिक बढ़ाता है, जपने वाले को भगवान शिव की दिव्य ऊर्जा के साथ जोड़ता है।
आशा करते हैं इस ब्लॉग, “”Rudrashtakam (रुद्राष्टकम): Most powerful Shiv Stotra” ने आवश्यक जानकारी प्रदान की होगी। भगवान भोलेनाथ का नाम जपते रहें और भगवान की कृपा आप सब पर बनी रहे।
“ॐ नमः शिवाय”